1982 में आ.शà¥à¤°à¥€ सनà¥à¤®à¤¤à¤¿à¤¸à¤¾à¤—र जी की आजà¥à¤žà¤¾ व आशीरà¥à¤µà¤¾à¤¦ से कà¥à¤·à¥. पूरà¥à¤£à¤¸à¤¾à¤—र का चातà¥à¤°à¥à¤®à¤¾à¤¸ कारंजा में समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हो रहा था। वहाठपर à¤à¤• सजà¥à¤œà¤¨ शà¥à¤°à¥€ धनà¥à¤¯à¤•à¥à¤®à¤¾à¤° जी थे बड़े कटà¥à¤Ÿà¤° सोनगढ़ी थे मà¥à¤¨à¤¿à¤°à¤¾à¤œà¥‹à¤‚ को तो मानते नहीं थे, पर न मालूम कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ छोटी अवसà¥à¤¥à¤¾ के नाते कà¥à¤·à¥.जी की परिचरà¥à¤¯à¤¾Â से बड़े पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ थे फिर à¤à¥€ कà¥à¤·à¥à¤²à¥à¤²à¤•à¥‹à¤‚ के पादपà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾à¤²à¤¨ पूजा के विरोधी थे। उनके घर जब चौका लगा तो कà¥à¤·à¥à¤²à¥à¤²à¤• जी का उनके यहाठआहार नहीं हो पा रहा था तà¤à¥€ गाà¤à¤µ में खबर फैल गई कि ये धनà¥à¤¯à¤•à¥à¤®à¤¾à¤° जी खड़े नहीं होते इसलिठमहाराज नहीं आ रहे हैं। तो उनकी माठने कहा- कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ रे ! कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ खड़ा नहीं होता। वे कà¥à¤·à¥.जी के पास आये और बोले महाराज कà¥à¤¯à¤¾ आपका आहार तà¤à¥€ होगा, जब मैं खड़ा होऊà¤à¤—ा। पर कà¥à¤·à¥.जी के मन में à¤à¤¸à¤¾ कà¥à¤› विचार था ही नहीं, फिर à¤à¥€ कà¥à¤·à¥.जी ने कà¥à¤› नहीं कहा- कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वे अपनी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾à¤“ं के पालन में दृढ़ थे। दूसरे दिन वे सà¥à¤µà¤¯à¤‚ पड़गाहन हेतॠखड़े हà¥à¤¯à¥‡, और योगायोग कà¥à¤·à¥.जी को दिख गये, वे à¤à¥€ पड़ग गà¤à¥¤ चौके में पहà¥à¤à¤šà¥‡ तो बड़ी संकोच-हिचहिचाहट के साथ पाद पूजा की और अरà¥à¤˜ à¤à¥€ चढ़ाया और हà¤à¤¸à¤¨à¥‡ लगे तथा बोले महाराज जी आप जीते तथा मैं हारा।
अतः पू.कà¥à¤·à¥. जी की वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤ परिचरà¥à¤¯à¤¾ तथा दृढ़ नियमों का पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ कि अचà¥à¤›à¥‡-2 कटà¥à¤Ÿà¤° लोग à¤à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ सहजता से नमà¥à¤°à¥€à¤à¥‚त हो जाते थे।
गà¥à¤°à¥ जीवन (मम) जीवंत आदरà¥à¤¶,
शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं - घटनाओं का सरà¥à¤— ।
मेरे जीवन का यही विमरà¥à¤¶,
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को कराऊठउनका दरà¥à¤¶ ।।
( घटनायें , ये जीवन की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• से लिठगठअंश )