पूजà¥à¤¯ कà¥à¤·à¥à¤²à¥à¤²à¤• पà¥à¤°à¥à¤£ सागर जी दीकà¥à¤·à¥‹à¤ªà¤°à¤¾à¤‚त निरनà¥à¤¤à¤° पूजà¥à¤¯ आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ सनà¥à¤®à¤¤à¤¿ सागर जी के कमरे में सोते, पढ़ते, बैठते और यहां तक वे उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ आहार-विहार में à¤à¥€ साथ ले जाते थे अतः उनकी दैनिक सà¤à¥€ कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¯à¥‡ गà¥à¤°à¥ दृषà¥à¤Ÿà¤¿ में ही संपनà¥à¤¨ होती है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि पूजà¥à¤¯ आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ का सà¥à¤µà¤ªà¤¨ था कà¥à¤·à¥à¤²à¥à¤²à¤• जी अचà¥à¤›à¤¾ अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨,आहार, चरà¥à¤¯à¤¾ करें और à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में à¤à¤• महान व शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ साधक बने।
à¤à¤• बार कà¥à¤·à¥à¤²à¥à¤²à¤• जी जब आहार हेतू निकले तो 2-4 राउंड लगाने पर à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ नहीं मिले, पर उनकी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾ थी आहार पूजà¥à¤¯ आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ के साथ ही करूंगा, जैसे तैसे पहà¥à¤‚चे, तो आहार में कà¥à¤› देखने लगे, तो पूजà¥à¤¯ आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ ने इशारे से कहा, पहले यहां लाओ कà¥à¤¯à¤¾ है, अंतराय करना है या नहीं, यह मैं बताऊंगा। अतः पूजà¥à¤¯ आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ कहते थे तà¤à¥€ अंतराय करते थे। और आहार के बाद ईयापथ à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ में सब निशà¥à¤›à¤²à¤µà¥ƒà¤¤à¤¿ से सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¥‡ थे कि हमने आहार में यह- यह लिया। यदि कदाचित à¤à¥‚ल जाते और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ जब à¤à¥€ याद आता तो उसी समय बालकवतॠबार-बार पहà¥à¤‚च जाते थे कि महाराज शà¥à¤°à¥€ में à¤à¥‚ल गया हमने यह-यह à¤à¥€ खाया था। तब बार-बार आने पर à¤à¥€ पूजà¥à¤¯ आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ डांटते नहीं थे बलà¥à¤•à¤¿ उनके à¤à¥‹à¤²à¥‡à¤ªà¤¨ पर मà¥à¤¸à¥à¤•à¥à¤°à¤¾à¤¤à¥‡ थे कि à¤à¤•à¤¦à¤® बालकवतॠनिशà¥à¤›à¤²à¤¤à¤¾ है ना डर,न शरà¥à¤® संकोच।
पूजà¥à¤¯ आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ का सà¥à¤µà¤ªà¤¨ à¤à¤• साकार रूप ले चà¥à¤•à¤¾ है परम पूजà¥à¤¯ आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ विराग सागर जी के रूप में।
गà¥à¤°à¥ जीवन (मम) जीवंत आदरà¥à¤¶,
शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं - घटनाओं का सरà¥à¤— ।
मेरे जीवन का यही विमरà¥à¤¶,
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को कराऊठउनका दरà¥à¤¶ ।।
( घटनायें , ये जीवन की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• से लिठगठअंश )