बात है सनॠ1980 दà¥à¤°à¥à¤— नगर की, जब कà¥à¤·à¥à¤²à¥à¤²à¤• दीकà¥à¤·à¤¾ के उपरांत पूरà¥à¤£ सागर जी à¤à¤• करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¤¶à¥€à¤² शिषà¥à¤¯ की तरह रहते थे पूजà¥à¤¯ गà¥à¤°à¥à¤µà¤° की छतà¥à¤°à¤›à¤¾à¤¯à¤¾ में। गà¥à¤°à¥à¤µà¤° के साथ ही आहार को जाते, उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ के कमरे में सोते तथा उनके समकà¥à¤· ही सारी कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤à¤‚ करते, अनावशà¥à¤¯à¤• कà¤à¥€ नहीं बोलते थे लेकिन यदि कोई गà¥à¤°à¥ के समकà¥à¤· विसंवाद करें, तरà¥à¤•- वितरà¥à¤• करें, असà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ रखें तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सहन नहीं होता। आखिर होता à¤à¥€ कैसे?वे à¤à¤• गà¥à¤°à¥ à¤à¤•à¥à¤¤ शिषà¥à¤¯ जो थे।
à¤à¤• बार à¤à¤¸à¤¾ हà¥à¤† कि à¤à¤• मà¥à¤¨à¤¿ महाराज, पूजà¥à¤¯ आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ सनà¥à¤®à¤¤à¤¿ सागर जी से किसी विषय में विसंवाद करने लगे फिर कà¥à¤¯à¤¾ था कà¥à¤·à¥à¤²à¥à¤²à¤• जी से सहा नहीं गया, पहले तो विनय पूरà¥à¤µà¤• आगà¥à¤°à¤¹ किया- आपको पूजà¥à¤¯ गà¥à¤°à¥à¤µà¤° के समकà¥à¤· विसंवाद नहीं करना चाहिà¤à¥¤ परंतॠजब वे नहीं माने, तो कà¥à¤·à¥à¤²à¥à¤²à¤• जी ने उन सà¥à¤¥à¥‚ल शरीर धारी मà¥à¤¨à¤¿ महाराज को अपने दोनों हाथों से वहां से हटाने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया परनà¥à¤¤à¥ छोटे-छोटे हाथों से उनके सà¥à¤¥à¥‚ल शरीर की पकड़ न बन पायी, फिर कà¥à¤¯à¤¾ था, पूरी शकà¥à¤¤à¤¿ ला दी महाराज जी को खींचने में और बाहर पहà¥à¤‚चकर उनसे कà¥à¤·à¤®à¤¾ याचना à¤à¥€ की और फिर गà¥à¤°à¥à¤µà¤° की महिमा, गà¥à¤°à¥ चरणों के महतà¥à¤µ को समà¤à¤¾à¤¯à¤¾, मà¥à¤¨à¤¿ महाराज छोटे कà¥à¤·à¥à¤²à¥à¤²à¤• की बातों से बड़े पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ हà¥à¤ तथा शांत हो गये।बाद में पूजà¥à¤¯ गà¥à¤°à¥à¤µà¤° ने कà¥à¤·à¥à¤²à¥à¤²à¤• जी को बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾- कà¥à¤·à¥à¤²à¥à¤²à¤• जी तà¥à¤°à¤‚त गà¥à¤°à¥ चरणों में उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हà¥à¤à¥¤ आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ बोले- कà¥à¤·à¥à¤²à¥à¤²à¤• जी,आपको à¤à¤¸à¤¾ नहीं करना चाहिठथा।तब कà¥à¤·à¥à¤²à¥à¤²à¤• जी विनीत à¤à¤¾à¤µ से बोले- गà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ, कोई आपसे बहस करें यह हम नहीं देख सकते, हमारे à¤à¥€ तो कà¥à¤› करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ है गà¥à¤°à¥ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¥¤ गà¥à¤°à¥ की à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿, सेवा सà¥à¤¶à¥à¤°à¥‚षा, वैयावृति के साथ-साथ गà¥à¤°à¥ की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ा का à¤à¥€ तो शिषà¥à¤¯ को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रखना चाहिठन, गà¥à¤°à¥à¤µà¤° छोटे कà¥à¤·à¥à¤²à¥à¤²à¤• की बातों को सà¥à¤¨ मन ही मन बहà¥à¤¤ आनंदित हà¥à¤à¥¤à¤œà¤¬ गà¥à¤°à¥ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ à¤à¤• शिषà¥à¤¯ को अंतरà¥à¤®à¤¨ से समरà¥à¤ªà¤£ होता है तो गà¥à¤°à¥ à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤à¤‚ सà¥à¤µà¤¤: होने लगती है।करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ दौड़ लगाने लगते हैं, वह मातà¥à¤° गà¥à¤°à¥ आदेश की पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ नहीं करता कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि गà¥à¤°à¥ à¤à¥€ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ की सेवा के लिठआदेश नहीं देते। वह मà¥à¤– से सेवा का अवसर मांगे या नहीं पर उसका मन पल-पल ढूंढता है वे अवसर। वह सबकी नजरों में आये या ना आये, उसकी सेवा किसी को दिखे या ना दिखे पर पारखी गà¥à¤°à¥ की नजरें पहचान लेती है उसे और वह गà¥à¤°à¥ के चरणों के साथ-साथ जगह पाता है उनके मन में, उनकी नजरों में और गà¥à¤°à¥ की कृपा दृषà¥à¤Ÿà¤¿ उसे बहà¥à¤¤ ऊंचा उठा देती है।
वासà¥à¤¤à¤µ में यही तो अंतरंग गà¥à¤°à¥ à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ और उसका फल है कि आज à¤à¥€ पूजà¥à¤¯ आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ सनà¥à¤®à¤¤à¤¿ सागर जी महाराज, आशीष की वरà¥à¤·à¤¾ करते हैं अपने पà¥à¤°à¤¿à¤¯ शिषà¥à¤¯ पर।
गà¥à¤°à¥ की विशà¥à¤µà¤¸à¥à¤¤ अनà¥à¤à¥‚ति ही
शिषà¥à¤¯ की
जीवनोनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ का दà¥à¤µà¤¾à¤° होती है।
गà¥à¤°à¥ जीवन (मम) जीवंत आदरà¥à¤¶,
शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं - घटनाओं का सरà¥à¤— ।
मेरे जीवन का यही विमरà¥à¤¶,
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को कराऊठउनका दरà¥à¤¶ ।।
( घटनायें , ये जीवन की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• से लिठगठअंश )