गुरु चरणानुगामी ही पाता है सच्चे मोक्षपथ को और बनता है श्रेष्ठ आचरणवान और प्रभावशाली। मोक्षपथ की राहों पर अग्रसर होते हुए क्षुल्लक पूर्णसागर जी, पूज्य गुरुवर आचार्य श्री सन्मति सागर जी महाराज के साथ सन 1980 में बढ़ रहे थे बुढार से अकलतरा की ओर, गर्मी की भीषण तपन, जँहा सूर्य देवता बिखेर रहे था अपनी किरणों को चहुँ ओर, ऊपर से विहार भी अधिक, क्षुल्लक पूर्णसागर जी तो गुरुवर के पीछे-पीछे चले जा रहे थे परंतु अन्य साधु जिनकी हालत चलते-चलते कुछ नरम हो गई थी, तलाश में थे छोटे रास्ते के। उपाय निकाला और short cut के चक्कर में अनजान रास्ते पर बढ़ गये, पर ये क्या हुआ वे तो रास्ता भटक गये। पूज्य आचार्य श्री ने पहले ही कहा था -
मार्ग चलना स्वच्छ सही
चाहे तकलीफ हो या देर भली
अतः गुरुवाणी के अनुसार तो ये होना ही था, पूज्य आचार्य श्री व क्षुल्लक जी सीधे रास्ते पर ही चल रहे थे, ठीक समय पर मुकाम पर पहुंच गए, आहार चर्या भी संपन्न हो गई परंतु अभी भी कोई नहीं पहुंचा, गुरुवर ने कुछ श्रावको को साधुओं को खोजने भेजा, जैसे-तैसे सब ठिकाने पर पहुंचे । चले थे short cut पर वह बन गया long cut ।
सभी शिष्य बोल उठे - गुरुवर, आपने ठीक कहा था सीधे रास्ते पर ही चलना चाहिए। क्योंकि क्षुल्लक जी ने पकड़ रखे थे गुरुचरण अतः शीघ्र मंजिल को पा लिया । क्षुल्लक जी की आज्ञाशीलता से मिला सभी को एक पाठ।
गुरु जीवन (मम) जीवंत आदर्श,
शिक्षाओं - घटनाओं का सर्ग ।
मेरे जीवन का यही विमर्श,
दुनिया को कराऊँ उनका दर्श ।।
( घटनायें , ये जीवन की पुस्तक से लिए गए अंश )