सच्चे साधकों की पहचान होती है उनकी वैराग्य शक्ति और संयम के प्रति दृढ़ता से, जिसके आगे झुकना पड़ता है सारी सृष्टि को, वैरागी को कौन बांध पाया है, कौन उसकी राहों को मोड़ सका है, किसने हवाओं को बांधा है, किसने सुमेरु को कम्पित किया है, सब जानते हुए भी रागी जन वैरागी जनों का रास्ता रोकते हैं। झूठे रिश्तों की सौगातें देकर उनको बांधने की व्यर्थ कोशिशें करते हैं और यह कोई आज की बात नहीं अनादि-काल से यही हुआ है, आज भी होता आ रहा है। वैरागी को रागियों से जूझना पड़ता है। पर अंत में होता क्या है जानना चाहते हैं तो पढिये पूज्य गणाचार्य श्री विराग सागर जी महाराज के जीवन में हुए रागी जनों से संघर्ष की रोचक शिक्षाप्रद सच्ची कहानी | माता-पिता का कोमल हृदय, हर पल, हर स्थान पर खोजता है अपनी वैरागी लाल को।खोज जारी थी पिता कपूरचंद जी की, सन् 1980 बुढार की गलियों में, बहुत समझाया, लोभ- मोह दिखाया परंतु दृढ वैरागी क्षुल्लक जी कहां हाथ आने वाले थे। 1 दिन प्रातः क्षुल्लक पूर्ण सागर जी अपने गुरुवर के साथ जा रहे थे शौच हेतु और गुरुवर के बगल से ही कपूरचंद जी के मन में एक तरकीब आयी और बोले-देखो तो इन चार दिन के क्षुल्लक को।दीक्षा लेते तो देर नहीं हुई और गुरु की बराबरी करने लगा, क्षुल्लक जी ने सुना तो सोचा हां, बात तो सही है, और वह पीछे-पीछे चलने लगे। पर ये क्या मोही पिता ने शीघ्रता से बेटे का हाथ पकड़ा और बोले- चल, घर चल। क्षुल्लक जी बोले- नहीं जाऊंगा। कैसे नहीं जायेगा, रस्सी से बांधकर ट्रेन में डालकर ले जाऊंगा। ठीक कहा आपने- आप कुछ भी कर सकते हैं पर प्रतिज्ञा व नियम तो मेरे हैं- मैं अन्न जल का त्याग कर दूंगा। आचार्य श्री, सब कुछ सुन रहे थे, अत: बोले-देखो वह बहुत मजबूत है, अपनी साधना से डिगने वाला नहीं फिर यदि ले जाना चाहते हो तो अच्छे से ले जाओ रास्ते में खींचा-तानी करना उचित नहीं।
बेचारे कपूरचन्द जी क्या करते, हाथ छोड़ दिया और वहां से वापस आए पर मोह क्या-क्या नहीं करवाता है। एक ही धुन थी कैसे भी हो बेटे को ले जाऊंगा। मैंने दीक्षा की इजाजत तो दी नहीं थी। आचार्य श्री ने कैसे मेरे लाल को दीक्षा दे दी। मोह के कारण पूज्य गुरुवर के प्रति भी उनका आक्रोश भडका और वे बिना विचारे की किनके प्रति क्या करने जा रहे हैं, फौरन पुत्र के मोह से पहुंचे पुलिस थाने रिपोर्ट लिखाने,जब सारी वार्ता सुनायी तो पुलिस इंस्पेक्टर ने चरण छू लिये कपूरचंद जी के और बोले- अरे आप तो महान है।आप तो पूज्य हो गये, जो इतने महान पुत्र को आपने जन्म दिया।जहां आज के पाश्चात्य युग में बच्चे धर्म से कतराते हैं चोरी, जुआ, शराब आदि व्यसनो में फंसते हैं, वहां आपका बच्चा धर्मपथ पर चलने तैयार हुआ है, आपको तो ऐसे पुत्र को गर्व होना चाहिए।
कपूरचंद जी उनकी बातों से द्रवित हो आंसू बहाते हुए लौटे एक हारे सिपाही की तरह। क्योंकि वे अपने पुत्र की वैराग्य शक्ति की दृढ़ता को देख चुके थे। रागी पिता हारे और वैरागी पुत्र विजयी हुआ।
गुरु जीवन (मम) जीवंत आदर्श,
शिक्षाओं - घटनाओं का सर्ग ।
मेरे जीवन का यही विमर्श,
दुनिया को कराऊँ उनका दर्श ।।
( घटनायें , ये जीवन की पुस्तक से लिए गए अंश )