1983 कारंजा,क्षुल्लक पूर्ण सागर जी का असातावेदनीय कर्म का पर्दा हटा, स्वास्थ लाभ हुआ, 6 माह के अंदर, स्वास्थ्य लाभ होते ही भावना थी लक्ष्य को पूर्ण करने की और क्षुल्लक जी के अंतरग के भावों को, विदुषी महिला नर्मदा ताई ने पढ़ लिया, वह समझ गई कि क्षुल्लक जी की भावना शीघ्र मुनि वेश धारण करने की हो रही है,अत: बोली- महाराज,यह आपकी दृढ संकल्प शक्ति का ही फल है कि आपने इतनी जल्दी आरोग्यता का लाभ किया है परंतु मुनि दीक्षा के पूर्व मेरा निवेदन है-आप एक बार शिखर जी की यात्रा अवश्य कर ले, मुनि पद धारण करने के बाद अनुकूल साधन सामग्रियां जुटाना कठिन है। क्योंकि असहाय मोक्ख मग्गो है।क्षुल्लक जी को बात जच गई, और यात्रा प्रारंभ हो गई, सभी स्थानों के दर्शन कर प्रसन्नता पूर्वक जब क्षुल्लक जी वापस लौट रहे थे, तब एक घटना घट गई-चलती बस के नीचे एक बकरी का बच्चा आ गया, यहां क्षुल्लक जी का करुणा से दयार्द्र हदय णमोकार मंत्र को जपने लगा, लगता था प्राण पखेरू उड़ गये होंगे पर नहीं, वह बच्चा तो सामने से घूसा और दोनों चक्को के अंतराल से छलांग लगाकर निकल गया क्योंकि उसकी रक्षा की भावना भायी जा रही थी। उस बच्चे के जीवित निकलते ही क्षुल्लक जी की जान में जान आई, प्रसन्नता से चेहरा खिल गया तथा दृढ संकल्प शक्ति का संचार हो गया। कि अब मैं कभी शासकीय या अशासकीय डेली सर्विस बसों में नहीं बैठूंगा। और प्रतिज्ञा की, कि आज से पगयात्रा करूंगा और ईर्या समिति पूर्वक पदयात्रा शुरू हो गई, जो अभी तक अविराम जारी है।
धन्य है पूज्य गुरुवर जिनकी दृढ संकल्प शक्ति व करूणा भाव ने आज उन्हें ऊंचाइयों के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा दिया।
गुरु जीवन (मम) जीवंत आदर्श,
शिक्षाओं - घटनाओं का सर्ग ।
मेरे जीवन का यही विमर्श,
दुनिया को कराऊँ उनका दर्श ।।
( घटनायें , ये जीवन की पुस्तक से लिए गए अंश )