1983 में टी.बी. के रोग से मà¥à¤•à¥à¤¤ होकर कà¥à¤·à¥à¤²à¥à¤²à¤• जी ने तीरà¥à¤¥à¤°à¤¾à¤œ सिदà¥à¤§à¤•à¥à¤·à¥‡â€Œâ€Œà¤¤à¥à¤° समà¥à¤®à¥‡à¤¦ शिखर की पà¥à¤¨à¥€à¤¤ यातà¥à¤°à¤¾ हेतॠबड़े उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ के साथ, मन में नई-नई उमंगों, à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ à¤à¤¾à¤µ के साथ पहाड़ पर पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤£ किया।असà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¯à¤¤à¤¾ होने पर à¤à¥€ आतà¥à¤®à¤¸à¤¾à¤¹à¤¸ उनका अपूरà¥à¤µ था कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ ना हो कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वे वहां है जहां से उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ उन अनंत सिदà¥à¤§-à¤à¤—वंतो की तरह निजसà¥à¤µà¤°à¥‚प की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ करनी है। शनै:-शनै: सकलकरà¥à¤®à¤•à¥à¤·à¤¯à¤¾à¤°à¤¥ की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾,मन में संजोये पूरी वंदना हो गई और लौटते-लौटते सायं 4 बज गये। तà¤à¥€ शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤•ों ने कहा-महाराज शीघà¥à¤°à¤¤à¤¾ से शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ करें और आहारारथ उठे। वे आहारारथ उठे-पर शà¥à¤°à¥‚ में ही करà¥à¤® रूपी चोर बालचंद के रूप में आ गये, à¤à¤• तो कमजोरी, वंदना की थकान और पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठमें अंतराय, सà¤à¥€ शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤• बड़े दà¥à¤–ित हà¥à¤à¥¤à¤ªà¤° कà¥à¤·à¥à¤²à¥à¤²à¤• जी के मà¥à¤–मंडल से समता ही बरस रही थी। जैसे ही यह समाचार वहां सà¥à¤¤à¤¿à¤¥ आरà¥à¤¯à¤¿à¤•ा सà¥à¤ªà¤¾à¤¶à¥à¤µà¤®à¤¤à¤¿ माताजी को जà¥à¤žà¤¾à¤¤ हà¥à¤† तो शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤• को बहà¥à¤¤ फटकारा। और दूसरे दिन सà¥à¤µà¤¯à¤‚ आहार की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ बनवाकर अपनी संघसà¥à¤¥ आरà¥à¤¯à¤¿à¤•ा इलायचीमति माता जी के साथ आहार के शोधनारà¥à¤¥ गई उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤• वातà¥à¤¸à¤²à¥à¤¯à¤®à¤¯à¥€ मां की तरह कà¥à¤·à¥à¤²à¥à¤²à¤• जी का पूरà¥à¤£ आहार करवाया।
सच जहां सरलता,सहजा ,विनय à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ होती है वहां सारे लोग अपने बन जाते हैं।
गà¥à¤°à¥ जीवन (मम) जीवंत आदरà¥à¤¶,
शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं - घटनाओं का सरà¥à¤— ।
मेरे जीवन का यही विमरà¥à¤¶,
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को कराऊठउनका दरà¥à¤¶ ।।
( घटनायें , ये जीवन की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• से लिठगठअंश )