सन 1977 में अरविंद जब अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨à¤°à¤¤ थे कटनी के शांति निकेतन सà¥à¤•ूल में, तब वे अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ के साथ-साथ बढ़ाते थे अपनी वैरागà¥à¤¯ शकà¥à¤¤à¤¿ को à¤à¥€, उनके ऊपर पंडित धनà¥à¤¯ कà¥à¤®à¤¾à¤° जी शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के धरà¥à¤®- संसà¥à¤•ारों का इतना अचà¥à¤›à¤¾ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ पड़ा कि उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठकर दी पूजा, सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯, सामाहिक आदि करना। खाना à¤à¥€ खाते तो मौन पूरà¥à¤µà¤• ही, साथ ही करते परà¥à¤µ के दिन अषà¥à¤Ÿà¤®à¥€ व चतà¥à¤°à¥à¤¦à¤¶à¥€ को à¤à¤•ासन। इतनी छोटी उमà¥à¤° और इतनी अचà¥à¤›à¥€ चरà¥à¤¯à¤¾ देख करते सà¤à¥€ बड़े जन पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा, पà¥à¤°à¤®à¥‹à¤¦à¤µà¤¶ कà¥à¤› सहपाठी जी तो उनके आते ही कह उठते- लो, तà¥à¤¯à¤¾à¤—ी जी आ गये। à¤à¤• दिन अरविंद जब बैठे थे मौन पूरà¥à¤µà¤• à¤à¥‹à¤œà¤¨ करने तà¤à¥€ कà¥à¤› शरारती सहपाठी बाहर से à¤à¤¾à¤¡à¤¼à¥‚ और बालà¥à¤Ÿà¥€ ले आये और रख दी अरविंद के सामने और बोले- लो महाराज,ये आपके पिचà¥à¤›à¥€ कमणà¥à¤¡à¤²à¥¤ पर वे à¤à¥‹à¤²à¥‡ सहपाठी कà¥à¤¯à¤¾ जानते थे कि ये अरविंद सचमà¥à¤š ही à¤à¤• बड़े महाराज बनने वाले हैं।
अरविंद सहपाठियों के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤®à¥‹à¤¦ à¤à¤¾à¤µ में परेशान किठजाने पर à¤à¥€ कà¤à¥€ बà¥à¤°à¤¾ नहीं मानते थे, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वे बहà¥à¤¤ धैरà¥à¤¯à¤¶à¥€à¤² व गंà¤à¥€à¤° थे वे मन में सोचते- ये नासमठहै, अनजान है, इसलिठशरारत कर रहे हैं सà¤à¥€ मेरे छोटे à¤à¤¾à¤ˆ की तरह है।
अरविंद का धैरà¥à¤¯ अपूरà¥à¤µ ही था, बचपन के ये छोटे तà¥à¤¯à¤¾à¤—ी जी आगे चलकर बनेंगे महतà¥à¤¯à¤¾à¤—ी पूजà¥à¤¯ गà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ शà¥à¤°à¥€ विराग सागर जी, यह कोई न जानता था।
गà¥à¤°à¥ जीवन (मम) जीवंत आदरà¥à¤¶,
शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं - घटनाओं का सरà¥à¤— ।
मेरे जीवन का यही विमरà¥à¤¶,
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को कराऊठउनका दरà¥à¤¶ ।।
( घटनायें , ये जीवन की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• से लिठगठअंश )