माठशà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤¾ के लाल अरविंद, जो संसार की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से था बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ रोज-रोज पड़ोसियों का à¤à¤—ड़ा, तो कà¤à¥€ माठकी शारीरिक हालत को देख वह विचार में डूब जाता- वासà¥à¤¤à¤µ में यह संसार तो नशà¥à¤µà¤° है,कà¤à¥€ à¤à¥€ धोखा दे सकता है अत: समय रहते सावधान होना ही बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤®à¤¾à¤¨à¥€ है। जैसे-जैसे अरविंद à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ बड़े होते गये उनका वैरागà¥à¤¯ à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤† निरंतर वृदà¥à¤˜à¤¿ को। उनके वैरागà¥à¤¯ रूपी वृकà¥à¤· को विकसित होने में पूजà¥à¤¯ आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ विदà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¾à¤—रजी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ धरà¥à¤®à¤°à¥‚पी नीर मिला सन 1975 में, जब कि वे विराजे थे कटनी नगर में। पूजà¥à¤¯ आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ का सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• खराब था, अत: अरविंद à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ हो गये गà¥à¤°à¥à¤µà¤° की सेवा में ततà¥à¤ªà¤°à¥¤
à¤à¤• दिन पूजà¥à¤¯ आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ को बहà¥à¤¤ तेज बà¥à¤–ार था, सारा शरीर अगà¥à¤¨à¤¿ की तरह तप रहा था, आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ ने पंडित जगनमोहन लाल जी को आवाज दी, परंतॠअरविंद की नींद खà¥à¤² गई, आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ ने कमणà¥à¤¡à¤² की ओर संकेत किया, अरविंद ने पूछा- आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ शौच चलना है कà¥à¤¯à¤¾? नहीं- लघॠशंका। अरविंद ने à¤à¤• हाथ में पकड़ा कमणà¥à¤¡à¤² तथा दूसरे हाथ से दिया सहारा आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ को। पास ही देहलान में आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ लघॠशंका हेतॠबैठगये। अरविंद कà¥à¤› समय तक तो पकडे रहे पर जेसे ही लघà¥à¤¶à¤‚का पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ होने लगी तो मरà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ वश- अब छोड़ देना चाहिठà¤à¤¸à¤¾ सोचकर जैसे ही छोड़ा तो यह कà¥à¤¯à¤¾ हà¥à¤†? आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ गिर पड़े, देखते ही अरविंद à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ चीख उठे तथा शीघà¥à¤° गà¥à¤°à¥à¤µà¤° को सहारा दे घास पर लिटा दिया परंतॠदà¥à¤–ित मना अरविंद के नेतà¥à¤°à¥‹à¤‚ से पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ हो रहे थे, पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¤¾à¤ª के अशà¥à¤°à¥à¥¤
पूजà¥à¤¯ आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ ने देखा तो बोले- कà¥à¤› नहीं।अरविंद à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ ने कà¥à¤·à¤®à¤¾ माà¤à¤—ी तो पूजà¥à¤¯ आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ ने अपना वातà¥à¤¸à¤²à¥à¤¯ à¤à¤°à¤¾ हाथ रख दिया अरविंद के ऊपर और कहा- शांत हो जाओ।
इस घटना से अरविंद का बाल मन बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ हà¥à¤† कि धनà¥à¤¯ है दिगंबर संत जो बाईस परिषहो को हंसते-हंसते सहते हैं। किसी पर कà¥à¤ªà¤¿à¤¤ नहीं होते, à¤à¤²à¥‡ ही कोई उनका कà¥à¤› à¤à¥€ अपकार करें। उनका हाथ सदैव आशीरà¥à¤µà¤¾à¤¦ व सहारा देने को उठता है। मानवीय गà¥à¤£à¥‹à¤‚ की जीवंत पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ होते हैं वे।सच, तà¤à¥€ तो किसी ने कहा है- संत ना होते जगत में तो जल जाता संसार संत हमे इतना कà¥à¤› देते हैं पर हम उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤¯à¤¾ दे पाते हैं? मैं इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ के पद चिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ पर चलूंगा अगर नहीं चल सका तो à¤à¥€ तन-मन से तैयार रहूंगा इनके राह के कांटों को हटाने में, इन गà¥à¤°à¥à¤“ं का उपकार चà¥à¤•ा नहीं पाऊंगा पर आà¤à¤¾à¤°à¥€ रहूंगा जीवन à¤à¤°à¥¤ और मन में ठान लिया कि अब मैं ततà¥à¤ªà¤° रहूंगा अहनिरà¥à¤¶ साधà¥-संतों की सेवा मे।
वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ विराग सागर जी महाराज के मन में जो साधरà¥à¤®à¥€ संतों के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ अपार शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ है उसकी नींव यही थी।
गà¥à¤°à¥ जीवन (मम) जीवंत आदरà¥à¤¶,
शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं - घटनाओं का सरà¥à¤— ।
मेरे जीवन का यही विमरà¥à¤¶,
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को कराऊठउनका दरà¥à¤¶ ।।
( घटनायें , ये जीवन की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• से लिठगठअंश )