1975 मे जब अरविन्द कटनी से घर पथरिया आ रहे थे तब भीषण गर्मी मई का महीना । पिताजी ने सोचा - गाँव मे तो तांगा- रिक्शा नहीं है कटनी नगर की तरह कि रेल से उतरो तो मिल जाये। अतः वे ही उसे लेने पहुँच गये। सुकोमल, नाजुक शरीर, भोला- चेहरा, कांधे पर बस्ता टांगे। हाथ मे झोला, चेहरे पर पसीना और होटो पर मुस्कान लिए पिता की वात्सल्यमयी आंखों ने स्टेशन की भीड़ में खोज लिया अपने चहेते पुत्र को। अरविंद की नजर जब पिताजी पर पड़ी तो प्यार भरी आवाज लगा दी - बाबू जी। भोली-भाली आवाज सुनकर पिताजी का हृदय वाग-वाग हो गया। पिताजी ने लंबे - लंबे कदम बढ़ाए और अरविंद को तकलीफ ना हो इसलिए उसे सामान सहित गोद में उठा लिया। अरविंद बोले - अरे! यह क्या बाबू जी छोड़िए, गोद मे अच्छा नहीं लगता। वे कुछ नहीं बोले -बस अरविंद को लेकर बढ़ते रहें घर की ओर। रास्ते मे कपूरचंद जी को सवारी बना देखकर सभी हँसते, कोई कहता- सेठ जी को क्या सूझी, जो 12 साल के लड़के को गोद में लेकर जा रहे है। कोई कहता- पहलवानी दिखा रहे है। परंतु कोई भी पिता के हृदय की वात्सल्यभरी भावना को नहीं समझ पा रहा था।
पिता की गोद में चलने वाला वह अरविंद आज इतना बड़ा हो गया कि उसकी धर्मगोद में/ शरण में सारे देश के भक्त, श्रावक, साधक तथा स्वयं के माता-पिता भी दीक्षा लेकर अपूर्व धर्म वात्सल्य को पा रहे है।
गुरु जीवन (मम) जीवंत आदर्श,
शिक्षाओं - घटनाओं का सर्ग ।
मेरे जीवन का यही विमर्श,
दुनिया को कराऊँ उनका दर्श ।।
( घटनायें , ये जीवन की पुस्तक से लिए गए अंश )