अरविन्द भैया थे बचपन से ही कोमल ह्रदयी व गुण ग्रहण प्रकृति के । हर एक अच्छी बात को अपने हृदय पर शीघ्र ही उतार लेते थे ।
सन 1974-75 के मध्य में एक बार कटनी में पधारा पूज्य आचार्य सुपार्श्व सागरजी का चतुर्विध संघ, फिर क्या था सेवा भावी अरविन्द शीघ्र ही सलंगन हो गए चतुर्विध संघ की सेवा में , एक दिन एक माताजी ने अरविन्द को पास बुलाया और कहा - अरविन्द जाओ रास्ते में एक कुत्ता मरणासन्न पड़ा है उसे उठा लाओ जैसे पार्श्व कुमार ने नाग-नागिन को णमोकार मंत्र सुनाकर उनकी सल्लेखना - समाधी करवाई थी वैसे हम भी उस कुत्ते की करायेंगे । अरविन्द शीघ्र ही कुछ विद्यार्थियों की सहायता से उस कुत्ते को उठा लाये , माताजी ने उसे णमोकार मंत्र सुनाकर उसकी सल्लेखना-समाधी कराई ।
अरविन्द का हृदय इस दृश्य को देखकर इतना प्रभावित हुआ की अब उन्हें जब भी कोई मरणासन्न कबूतर , चिड़िया , गाय के बछड़े , चूहा , कुत्ता या पिल्ले देखते तो वे उन्हें णमोकार मंत्र सुनाकर करवाते सल्लेखना -समाधी व उनकी गति सुधरवाते ।
बचपन के संस्कारों का ही प्रभाव है की आज वे एक महान निर्यापकाचार्य (श्री विराग सागर जी) बनकर अपने कुशल निर्देशन में अनेकों त्यागी -व्रतियों व ममुक्षाओ की करा रहे है सल्लेखना समाधी
गुरु जीवन (मम) जीवंत आदर्श,
शिक्षाओं - घटनाओं का सर्ग ।
मेरे जीवन का यही विमर्श,
दुनिया को कराऊँ उनका दर्श ।।
( घटनायें , ये जीवन की पुस्तक से लिए गए अंश )