अरविन्द की गंभीरता, विनयाचार और शिष्टता जिसका प्रभाव सर्वत्र द्रष्टव्य होता था, सन 1973 मे जब वे पथरिया मे थे तो अपने छोटे-भाई- बहिनों के साथ- साथ रखते थे ध्यान मोहल्ले के बच्चो का भी, कभी स्कूल की पढाई तो कभी होमवर्क परीक्षण करते कौन पढ़ता नहीं है, यदि कोई बुरी आदतों का शिकार है तो उसे भी रोकते, तथा कभी जाते मोहल्ले का निरीक्षण करने की आज कौन- कौन स्कूल नहीं गया, सभी बच्चो पर अरविन्द भैया का अच्छा प्रभाव था, सभी उनकी बात मानते थे, कारण था की अरविन्द भैया जितना डाँटते- पीटते थे उतना ही बच्चो को स्नेह भी देते थे, वे बाजार से मिठाई लाते या घर पर बनती तो सभी को समान रूप से बाँटते थे, तथा कोई अनुपस्थित रहा तो उसके हिस्से की वस्तु को सुरक्षित रखते थे, दूसरे का दुःख देखकर उनका कोमल हदय द्रवित हो जाता था अत: सभी लोगो के सरलता से स्नेह भाजक बन जाते थे, मोहल्ले के बुजुर्गो व ज्येष्ठ लोगो के प्रति विनयाचार एवं सेवाभाव रहता था जिससे सभी स्नेह करते थे अरविन्द से।
आगे कदम बढे जब अरविन्द के कटनी बोर्डिंग की और तो सहपाठी व शिक्षकों को विनय व सम्मान से अपना बना लिया, तो क्षुल्लक अवस्था मे गुरु संघ मे रहकर बने अनुशासन मे सहयोगी, जब मुनि बने तो नवीन युवा पीढ़ी को धर्म मार्ग पर अग्रसर किया और आज वे आचार्य पद पर आसीन हो गणाचार्य श्री विराग सागर जी के रूप मे संपूर्ण भारत मे धर्म ध्वजा को फहरा रहे है। बचपन के सुसंस्कारों का प्रभाव जो उनके जीवन की ऊचाइयों का आधार स्तंभ बना तथा लाभांवित हुआ सारा परिवेश।
गुरु जीवन (मम) जीवंत आदर्श,
शिक्षाओं - घटनाओं का सर्ग ।
मेरे जीवन का यही विमर्श,
दुनिया को कराऊँ उनका दर्श ।।
( घटनायें , ये जीवन की पुस्तक से लिए गए अंश )