पूत के पाà¤à¤µ (लकà¥à¤·à¤£) पलने में नजर आने लगते है ये कहावत पूरà¥à¤£ रूपेण अरविनà¥à¤¦ पर चरितारà¥à¤¥ होती है । वे बचपन से ही उदासीन थे । गृहकारà¥à¤¯à¥‹ में , दà¥à¤•à¤¾à¤¨à¤¦à¤¾à¤°à¥€ में मन ही नहीं लगता था । पथरिया सन १९à¥à¥© में जब वे दà¥à¤•à¤¾à¤¨ पर उदासीन à¤à¤¾à¤µ से बैठते थे । उनकी किराने की दà¥à¤•à¤¾à¤¨ थी , जब कोई गाय आदि दà¥à¤•à¤¾à¤¨ में घà¥à¤¸à¤•à¤° अनाज आदि खाने लगती तो, वे उसे à¤à¤—ाने की बजाय, वीतराग à¤à¤¾à¤µ से देखते और उसे खाने का पूरा मौका देते । सोचते , पता नहीं कितनी à¤à¥‚खी होगी , कब से नहीं खाया होगा । दयालॠहृदय उसे पानी à¤à¥€ पीने को रख देते । यà¤à¤¹à¤¾ तक दà¥à¤•à¤¾à¤¨ पर यदि कोई गà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤• आता तो बेचे गये सामान के पैसे à¤à¥€ नहीं माà¤à¤—ते, सà¥à¤µà¥‡à¤šà¥à¤›à¤¾ से दे गया तो ठीक है, अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ परवाह नहीं, नहीं देने वाले की मज़बूरी को विचारते कि बेचारा गरीब है , पैसे कà¤à¤¹à¤¾ से देगा ? हमेशा चिंतन में खोये रहते कि इन सारे दà¥à¤–ी जीवों का दà¥à¤– कैसे दूर होगा । काश ! मेरे पास वो शकà¥à¤¤à¤¿ आ जाये जो हर किसी का दà¥à¤ƒà¤– दूर कर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सà¥à¤– से à¤à¤° दूठ।
करà¥à¤£à¤¾ की पवितà¥à¤° मूरà¥à¤¤à¤¿ की वही दया आज विराट रूप में हमारे समकà¥à¤· विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ है । जो दिगमà¥à¤¬à¤° मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ का बाना धारण कर अनà¥à¤à¤µ में रत रहते है तथा अनेक à¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के सहारे, शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के पà¥à¤°à¤¿à¤¯ आदरà¥à¤¶ , जन-जन पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤• संत परम पूजà¥à¤¯ गणाचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ विराग सागर जी महाराज के नाम से जगत विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ है ।
गà¥à¤°à¥ जीवन (मम) जीवंत आदरà¥à¤¶,
शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं - घटनाओं का सरà¥à¤— ।
मेरे जीवन का यही विमरà¥à¤¶,
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को कराऊठउनका दरà¥à¤¶ ।।
( घटनायें , ये जीवन की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• से लिठगठअंश )