सन १९७२ में जब टिन्नू भैया , दाऊ भैया कहलाने लगे, तब एक बार माँ ने कहा - दाऊ भैया , जाओ दुकान से शुद्ध घी का बर्तन उठा लाओ । तब दाऊ चले, पर साथ में विजय भैया भी दौड़ लिए जब वे घी लेकर लौट रहे थे तभी से विजय की नज़र घी पर थी । दाऊ भैया भी समझ गये, फिर क्या , वे बोले - भैया घी खाओगे । विजय ने सोचा नेकी और पूछ-पूछ दोनों बारी-बारी से बर्तन में हाथ डालकर घी का लौंदा निकालते और उसे खाने लगे, जैसे पहले यशोदा के लाल बलदाऊ और श्री कृष्ण ने मक्खन खाया था, वही दृश्य उस समय माँ श्यामा के लाल अरविन्द दाऊ और विजय भैया का था । अरविन्द यह तो भूल ही गये की घी का बर्तन घर लेकर भी जाना है । दोनों प्रसन्नता से बैठे थे पुलिया में और जमे थे घी खाने में, तभी वंहा से पड़ोस की मौसी शांति बाई निकली तो दोनों को घी खाते देखा, फिर क्या दोनों नन्हे घी चोरो की कलाइयाँ पकड़ कर माँ श्यामा के दरबार में इस तरह हाज़िर हो गई जिस तरह यशोदा माँ के पास मक्खन चोर श्री कृष्ण को लाई हो । सारी बात बताई , माँ भी थोड़ा झुंझलाई , पर नन्हें चोरो को कुछ भी बात अभी भी समझ में ना आई , की हमें इन्होने क्यों डांट लगाई और शांत बालक की तरह सुनते रहे मनो उनसे कोई गलती ही न हुई हो |
गुरु जीवन (मम) जीवंत आदर्श,
शिक्षाओं - घटनाओं का सर्ग ।
मेरे जीवन का यही विमर्श,
दुनिया को कराऊँ उनका दर्श ।।
( घटनायें , ये जीवन की पुस्तक से लिए गए अंश )