सन १९à¥à¥¨ में जब टिनà¥à¤¨à¥‚ à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ , दाऊ à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ कहलाने लगे, तब à¤à¤• बार माठने कहा - दाऊ à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ , जाओ दà¥à¤•à¤¾à¤¨ से शà¥à¤¦à¥à¤§ घी का बरà¥à¤¤à¤¨ उठा लाओ । तब दाऊ चले, पर साथ में विजय à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ à¤à¥€ दौड़ लिठजब वे घी लेकर लौट रहे थे तà¤à¥€ से विजय की नज़र घी पर थी । दाऊ à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ à¤à¥€ समठगये, फिर कà¥à¤¯à¤¾ , वे बोले - à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ घी खाओगे । विजय ने सोचा नेकी और पूछ-पूछ दोनों बारी-बारी से बरà¥à¤¤à¤¨ में हाथ डालकर घी का लौंदा निकालते और उसे खाने लगे, जैसे पहले यशोदा के लाल बलदाऊ और शà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£ ने मकà¥à¤–न खाया था, वही दृशà¥à¤¯ उस समय माठशà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤¾ के लाल अरविनà¥à¤¦ दाऊ और विजय à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ का था । अरविनà¥à¤¦ यह तो à¤à¥‚ल ही गये की घी का बरà¥à¤¤à¤¨ घर लेकर à¤à¥€ जाना है । दोनों पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ से बैठे थे पà¥à¤²à¤¿à¤¯à¤¾ में और जमे थे घी खाने में, तà¤à¥€ वंहा से पड़ोस की मौसी शांति बाई निकली तो दोनों को घी खाते देखा, फिर कà¥à¤¯à¤¾ दोनों ननà¥à¤¹à¥‡ घी चोरो की कलाइयाठपकड़ कर माठशà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤¾ के दरबार में इस तरह हाज़िर हो गई जिस तरह यशोदा माठके पास मकà¥à¤–न चोर शà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£ को लाई हो । सारी बात बताई , माठà¤à¥€ थोड़ा à¤à¥à¤‚à¤à¤²à¤¾à¤ˆ , पर ननà¥à¤¹à¥‡à¤‚ चोरो को कà¥à¤› à¤à¥€ बात अà¤à¥€ à¤à¥€ समठमें ना आई , की हमें इनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ डांट लगाई और शांत बालक की तरह सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ रहे मनो उनसे कोई गलती ही न हà¥à¤ˆ हो |
गà¥à¤°à¥ जीवन (मम) जीवंत आदरà¥à¤¶,
शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं - घटनाओं का सरà¥à¤— ।
मेरे जीवन का यही विमरà¥à¤¶,
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को कराऊठउनका दरà¥à¤¶ ।।
( घटनायें , ये जीवन की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• से लिठगठअंश )