अरविन्द का मन बड़ा ही भावुक था। करुणा उनके रोम रोम में थी। मानव तो मानव, मूक प्राणियों के प्रति भी उनका मन सदैव दया से ओत-प्रोत रहता था, वही संस्कार तो आज भी विघमान हैं जो थे कल के अरविन्द में।
बात सन् 1970 पथरिया नगर की है जब तेज कड़कड़ाती सर्दी पड़ रही थी, शीत बाहर अपना प्रकोप दिखा रही थी, उसी समय ठंड के कारण कुत्ते के पिल्लो के चीखने की आवाज़ सुनाई दी अरविंद को, बस उन मूक प्राणियों का दर्द उनसे देखा न गया और उन्हें बड़े प्यार से उठा अपने कोट की जेब मे रख लिया। उन्हें न तो गंदगी से घ्रणा हुई, न ही कीमती कोट की परवाह, उन्हें डर था केवल माँ का। माँ ने अरविन्द को चाय बनाकर दी, तो वह भी पिल्लों को पिला दी और माँ के पूछने पर कहा- हाँ, मैंने चाय पी ली। और उन्हें बोरों से ढंककर सुला दिया किन्तु असलियत ज्ञात हुई तो माँ के डर से अरविन्द की रूह काँप उठी। किन्तु यह जानकर कि मेरे बेटे ने इन नन्हें प्राणियों के दुःख को बाँटा है, प्रसन्नता से हृदय भर गया। बस, माँ ने उन्हें छोड़ने का आग्रह किया तो भोले अरविन्द बोले- नहीं माँ, मैं तो इनके साथ खेलूंगा। माँ ने पुनः कहा- नहीं बेटा इनकी माँ को दुख होगा तथा वो इन्हें ढूंढती होंगी अतः इन्हें छोड़ दो। करुणा से भरे अरविन्द ने स्वयं जाकर पिल्लों को उनकी माँ के पास छोड़ दिया, किन्तु ह्रदय में एक टीस लग गईं, स्वयं की राग-द्वेष-मोह रूपी गंदगी को दूर करने की। स्वयं की आत्मा पवित्र बनाने की। आज वही अरविन्द विकसित होकर पूज्य गणाचार्य श्री विराग सागर जी के रूप में अपने करुण मन से सभी के अज्ञान भाव को तिरोहित के ज्ञान की वर्षा कर रहे हैं।
गुरु जीवन (मम) जीवंत आदर्श,
शिक्षाओं - घटनाओं का सर्ग ।
मेरे जीवन का यही विमर्श,
दुनिया को कराऊँ उनका दर्श ।।
( घटनायें , ये जीवन की पुस्तक से लिए गए अंश )