1968 का वर्ष जो लाया था अरविन्द की शिक्षा के क्षण । पथरिया के फड़के बालमंदिर में प्रवेश कराया गया । सभी बच्चों की तरह अरविन्द भी प्रारम्भ में स्कूल जाने में अक्सर रोने लग जाते थे । प्राय: मम्मी से कहते तुम भी स्कूल साथ चलो । हम अकेले नहीं जाएँगे । माँ समझाती की स्कूल में किसी की मम्मी नहीं जाती । वे सुनकर चुप रह जाते और बोलते - हमे कुछ नहीं मालूम मम्मी जाती की नहीं , पर तुम चलो । तब पापाजी ने एक रास्ता खोजा बोले टिन्नू तुम स्कूल जाओगे तो मिठाई दूंगा । वे बोले - अच्छा, तो पहले दो । मिठाई मिल गई वे खाकर खुश होकर बालमंदिर पढ़ने चले गये । पर यह क्या ? घंटा भर बाद वे फिर लौट आये । पापा जी बोले - अब क्या हो गया । टिन्नू जी बोले - कुछ नहीं । फिर से मिठाई दो तो अभी फिर बालमंदिर चला जाऊंगा । भोली बातों को सुन पिताजी खूब हॅसे । अब तो यह क्रम ही बन गया की पहले मिठाई फिर स्कूल । पिताजी ने कल्लू बड्ड़ा से सम्पर्क किया, जिनकी मिठाई की दुकान स्कूल के रास्ते में थी अब तो टिन्नू जी पहले मनपसंद मिठाई मगद का लड्डू या कलाकंद लेते फिर स्कूल चले जाते ।
जिन्होंने बाल्यकाल की शिक्षा का प्रारम्भ मीठा खाकर किया था इसलिए ही उनकी वाणी, ज्ञानधारा में मिठाई से भी ज्यादा मिठास श्रावको के मन को भाती हैं ।
गुरु जीवन (मम) जीवंत आदर्श,
शिक्षाओं - घटनाओं का सर्ग ।
मेरे जीवन का यही विमर्श,
दुनिया को कराऊँ उनका दर्श ।।
( घटनायें , ये जीवन की पुस्तक से लिए गए अंश )