1968 कि लगà¤à¤— घटना हैं जब अरविनà¥à¤¦ का छोटा à¤à¤¾à¤ˆ विजय मातà¥à¤° डेॠवरà¥à¤· का था । ठंड का समय था दोनों à¤à¤¾à¤ˆ खेल रहे थे । ठंड के कारण अरविनà¥à¤¦ नहाने को तैयार नहीं हो रहे थे । तब पिताजी ने जबरन कपडे उतार दिये, और ममà¥à¤®à¥€ ने सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करा दिया ठंडी और पानी à¤à¥€ ठंडा फिर कà¥à¤¯à¤¾ वे जोर-जोर से रोने लगे , पर फिर à¤à¥€ ममà¥à¤®à¥€ मल-मल कर सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ कराती रही । तà¤à¥€ वà¤à¤¹à¤¾ से कलà¥à¤²à¥‚ बडà¥à¥œà¤¾ कैमरा टांगे निकले, रोता अरविनà¥à¤¦ को देखकर उसे चà¥à¤ª करने के लिठकहा - अरविनà¥à¤¦ देखो यह कैमरा , तà¥à¤® रोना बंद करो , तो तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ फोटो उतारूà¤à¤—ा । रोता बालक बातो में आकर चà¥à¤ª हो गया । और फोटो खिचवाने तैयार । उसका फोटो सà¥à¤Ÿà¤¾à¤‡à¤² , खड़े होने का ढंग देखकर पिताजी बोले (वà¥à¤¯à¤‚गà¥à¤¯ करते हà¥à¤ कि) यह तो नेताओं कि तरह फोटो खिंचवाता हैं । मगर अगले ही कà¥à¤·à¤£ में वे सहम गये, जब उनका धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ उसकी नगà¥à¤¨à¤¤à¤¾ पर गया , मन कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ कर बैठा ननà¥à¤¹à¥‡ अरविनà¥à¤¦ में दिगमà¥à¤¬à¤° मà¥à¤¨à¤¿ कि । कि मà¥à¤¨à¤¿à¤°à¤¾à¤œ कि ही फोटो खींची जा रही हो । यह à¤à¤¾à¤µ उनके हà¥à¤°à¤¦à¤¯ -आतà¥à¤®à¤¾ में चिपक गया कि - मेरा ननà¥à¤¹à¤¾ अरविनà¥à¤¦ मà¥à¤¨à¤¿à¤°à¤¾à¤œ तो नहीं बन जाà¤à¤—ा ।
मन कि à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ साकार हà¥à¤ˆ और कपूरचंद जी का ननà¥à¤¹à¤¾ अरविनà¥à¤¦ अब बन चà¥à¤•à¤¾ हैं परम पूजà¥à¤¯ आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ विराग सागर जी महाराज
गà¥à¤°à¥ जीवन (मम) जीवंत आदरà¥à¤¶,
शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं - घटनाओं का सरà¥à¤— ।
मेरे जीवन का यही विमरà¥à¤¶,
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को कराऊठउनका दरà¥à¤¶ ।।
( घटनायें , ये जीवन की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• से लिठगठअंश )