जन्म से लेकर जीवनपर्यन्त तक जिनकी सारी प्रतिक्रियायें सामान्य लोगो से हटकर , निराली तथा आश्चर्य को उत्पन करने वाली होती है उन्हें ही महापुरुष कहा जाता है । ऐसे ही एक दिव्य महान आत्मा का जन्म जब भारत भूमि के दमोह जिले के पथरिया ग्राम में सेठ श्री कपूरचंद जी एवं उनकी धर्मपत्नी श्यामादेवी के यहाँ 2 मई ,1963 (गुरुवार ) में हुआ था तब उनकी माँ को भी शुभ आश्चर्यजनक स्वपन आया की मैं स्नानकर ताजे वस्त्र पहन हुए हूँ और श्रीजी की पूजन कर रही हूँ । पूजनोपरान्त घर आती हूँ तो सामग्री से सजी थाली लेकर अपने पतिदेव के साथ खड़ी हूँ । सामने से एक दिगम्बर मुनिराज आ रहें हैं । हम दोनों (पति-पत्नी) पड़गाहते है वे हमारे चौके को धन्य करते है । हम दोनों उन्हें निर्विघ्न आहार देते है फिर उन्हें बड़े मंदिर तक पहुँचाने जाते है । इस स्वपन ने संकेत पूर्व में दे दिए थे की यह बालक भविष्य में मुनिराज बनेगा और मुनिराज बनकर अनेकोनेक मुनिराजों साधको को दीक्षित कर मोक्षमार्ग को संवर्धित करेगा ।
गुरु जीवन (मम) जीवंत आदर्श,
शिक्षाओं - घटनाओं का सर्ग ।
मेरे जीवन का यही विमर्श,
दुनिया को कराऊँ उनका दर्श ।।
( घटनायें , ये जीवन की पुस्तक से लिए गए अंश )