सनॠ1985, गà¥à¤°à¥à¤µà¤° जब थे मà¥à¤¨à¤¿ अवसà¥à¤¥à¤¾ में तब सानिधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हआ आचारà¥à¤¯ धरà¥à¤® सागर जी महाराज का, परनà¥à¤¤à¥ अचानक à¤à¤• दिन मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ का सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ बहà¥à¤¤ अधिक खराब हो गया, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ठणà¥à¤¡ देकर तेज बà¥à¤–ार आ गया, अब कà¥à¤¯à¤¾ किया जाठतो मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ सूखी घास के पà¥à¤¯à¤¾à¤² पर चटाई ओढ़कर लेट गये, उस समय आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ धरà¥à¤® सागर जी महाराज पà¥à¤°à¤®à¥‹à¤¦ à¤à¤¾à¤µ से उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤¾à¤¯: शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ या पंडित कहा करते थे। आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€, मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ को देखने आये अगà¥à¤¨à¤¿ सा तपता बदन, मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ को कà¥à¤› होश ही नहीं था कि कौन आया कौन गया? दूसरी बार पà¥à¤¨à¤ƒ आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ देखने आये और आवाज लगाई - विराग सागर ठीक हो, अब की बार जैसे ही आवाज मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ के कानों में पड़ी उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने तà¥à¤°à¤‚त पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया उठने का परनà¥à¤¤à¥ महाराजों ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ इतनी चटाईयों से ढक दिया था कि सहसा उठनहीं पाये, आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ ने लेटे रहने का संकेत दिया पर मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ हिमà¥à¤®à¤¤ करके उठे, आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ ने उने संबोधन दिया, उसी से उनका आधा बà¥à¤–ार उतर गया, फिर मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ लेटे नहीं अपितॠपà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤®à¤£ सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ हेतॠबैठे रहे। इतनी असà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¤à¤¾ में अपने षडà¥à¤†à¤µà¤¶à¥à¤¯à¤•à¥‹à¤‚ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ जागरà¥à¤• रहे, धनà¥à¤¯ था उनका आतà¥à¤®à¤¬à¤², वही उनकी आतà¥à¤®à¥‹à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¿ का साधक बन गया।