1985 केशरिया जी ऋषभदेव की मन लुभावनी रोचक घटना है।
एक बार वहाँ 7 साल का बालक अड़ गया कि मैं भी मुनिश्री विरागसागर जी को आहार दूंगा, तभी आज भोजन करूँगा, नहीं तो भूखा रहूंगा। उसकी माँ ने बहुत समझाया बेटा अभी तुम छोटे हो, नहीं माना तो प्यार-दुलार से, टाफी देकर, मनाने का प्रयास किया, सुबह से शाम हो गई पर उसने भोजन नहीं किया, पिताजी ने भी समझाया जब वह नहीं माना तो माता-पिता ने मिलकर पूजा-पाठ भी कर दी, पर वह तो रोता रहा, खाना नहीं खाया पहले महाराज को आहार दूँगा। माँ परेशान होकर उसे मुनिश्री के पास ले आई, सारी समस्या बताई, मुनिश्री ने उससे कहा- देखो, तुम छोटे हो, और हम खड़े होकर आहार लेते हैं, तुम्हारा हाथ ऊपर नहीं पहुँच पायेगा तो वह भोली भाषा में महाराज श्री से बोला- मैं एक टेबिल पर खड़ा हो जाऊँगा। सुनकर हँसी आ गई, उन्होंने कहा तुम्हे मालूम है आलू-प्याज, रात्रिभोजन का त्याग करना होता है? उसने कहा- हाँ। तो तुम कितने समय का त्याग करोगे? आजीवन। अच्छा आजीवन जानते हो कितना बड़ा होता है? हाँ, जब तक मरूँगा नहीं। उसकी दृढ़ता भरी बातें बड़ी प्रभावक थी। अच्छा- रात्रि में भूख लगेगी तो क्या करोगे? बोला फल खा लँगा। फल न मिले तो? दूध पी लूंगा। दूध न मिला तो? पानी पीकर सो जाऊँगा। और नींद नहीं आई तो? उसने सुन्दर जवाब दिया महाराज श्री मैं रात भर णमोकार मंत्र जपता रहूँगा। पर नियम नहीं तोडूंगा। पर आहार आप ले लो। मुनिश्री ने कहा- ठीक, कल शुद्ध वस्त्र पहनकर आना और वह तो सुबह से ही तैयार और आहारोपरांत उन्होंने उससे हाथ धुलवा लिये। उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।
ऐसे थे मुनिश्री के परम भक्त कि जिनके आगे भगवान को भी झुकना पड़ा।