जो निरत रहते हैं सदा तपाराधना में ऐसे पूज्य मुनि श्री विराग सागर जी सन् 1985 में विराजे थे पाँचवा में।
एक दिन पूज्य मुनि श्री वृत्ति परिसंख्यान व्रत को धारण कर निकले आहार चर्यार्थ, पर ये क्या? एक चक्कर, दूसरा चक्कर व तीसरा चक्कर भी पूर्ण हुआ परन्तु विधि नहीं मिली, लोगों में शोरगुल था आखिर क्या विधि हो सकती है, बहुत प्रयास किया परन्तु विधि नहीं मिली परिणामस्वरुप मुनि श्री का उपवास हो गया, सारे चौके वाले उदास थे, रात्रि के समय एक चमत्कारिक घटना हुई, कुछ लोगों को रात्रि में विधि विषयक स्वप्न आया, एक महिला ने भी स्वप्न में देखा कि मैं तीन मिट्टी के भरे कलश लेकर मुनि श्री का पड़गाहन कर रही हूँ।
स्वप्न अनुसार दूसरे दिन उस महिला ने वही विधि रखी अर्थात् सिर पर तीन भरे कलश लेकर पड़गाहन को खड़ी हो गई फिर क्या था विधि मिलते ही मुनि श्री पड़ग गये और निर्विघ्न आहार सम्पन्न हो गया।
चारों ओर मुनि श्री की उत्कृष्ट तपश्चर्या की जय - जयकार होने लगी।