पूज्य मुनि श्री विराग सागर जी का चातुर्मास सन् 1984 में गुरुवर विमल सागर जी की कृपा से चल रहा था भावनगर में। कर्मों ने अपना राज्य स्थापित हेतु सबसे पहले अपने एक सिपाही को मुनि श्री के पास भेजा जिसका नाम था बालचन्द, जैसे ही मुनि श्री का आहार हुआ। बालचन्द जी आहार की सामग्री के साथ मुनि श्री के हाथ में जा बैठे, मुनि श्री भी युद्ध के लिए तैयार थे अत: उन बालचन्द जी को ग्रास सहित पात्र में पटक दिया। मुनि श्री वैराग्य से ओतप्रोत कर्म विपाक के चिंतन में डूब गये, चेहरे पर शिकन तक नहीं, गृहस्थ लोगों को बहुत दुःख हुआ तो विरक्तमना मुनि श्री बोले - आप दुखी ना हों, आज तो मेरी संवर, निर्जरा और अधिक होगी , युद्ध में आये सिपाही को मैंने खदेड़ दिया। कर्म महाराज को अपनी हार देखकर बड़ा गुस्सा आया दूसरे दिन पुनः युद्ध करने दूसरा सिपाही भेजा, जीवलाल, अब की बार जीवलाल ने और अधिक कठोरता दिखलाई तथा प्रारंभ में ही आ धमके , मुनि श्री ने प्रसन्नता से उन्हें भी खदेड़ दिया, अब तो श्रावकों का दुःख और बढ़ गया लगातार दो अंतराय। मुनि श्री बोले-हमारा वास्तविक भोजन तो ज्ञानामृतं भोजनं अर्थात् ज्ञानामृत, ही भोजन है। अत: मुझे कर्म संवर व निर्जरा हेतु मैदान में डटे रहने दो। श्रावकों ने सोचा, चलो ठीक है कल हम बहुत सावधानी से निरंतराय आहार कराएंगे। परन्तु ये क्या महाराजा कर्मचन्द का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और लगातार सिपाहियों को भेजकर 10 दिन तक युद्ध जारी रखा और हर दिन मुनि श्री की समता व दृढ़ता रुपी सुभट सखियों ने जो कि युद्ध में पारंगत थीं सारे सिपाहियों को खदेड़ डाला, परन्तु 10 दिन तक लगातार अंतराय होने से सारी समाज विह्वल सी हो गई सबकी आँखें आसुओं से भर गई। अतः सभी ने निर्णय लिया कि हम सब पूज्य आचार्य श्री विमल सागर जी महाराज के पास चलेंगे। वे तो वात्सल्य और करुणा की साक्षात् मूर्ति हैं अतः हमें कुछ न कुछ उपाय बतालायेंगे। जब पूज्य आचार्य श्री विमल सागर जी महाराज को यह समाचार मिला तो उनका हृदय द्रवित हो गया और तुरन्त संघ संचालिका चित्राबाई के हाथों मंत्र सेबफल भेजे और अब आहार का प्रारंभ हुआ गुरु प्रसाद से, गुरु आशीष का चमत्कार-आहार निरंतराय हो गया अर्थात् गुरुमंत्रों के प्रभाव से कर्मचन्द जी राज जमाने का विचार छोड़ अपनी सेना सहित भाग खड़े हुए। पूज्य आचार्य श्री विमल सागर जी को जब यह पता चला कि मुनि श्री इतने अंतराय होने पर भी अपनी साधना में दृढ़ व प्रसन्नचित्त हैं तो गुरु का हृदय शिष्य स्नेह से आपूरित हो गद् गद् हो गया और अंतरात्मा से जो आशीष की वर्गणाएँ संप्रेषित हुईं उन्हीं ने मुनि श्री के अंतराय को बंद करा दिया।
धन्य है पूज्य मुनि श्री की दृढ़ता व गुरुवर का चमत्कारी आशीर्वाद जिसके आगे कर्मशत्रु को हार माननी पड़ी।
गुरु जीवन (मम) जीवंत आदर्श,
शिक्षाओं - घटनाओं का सर्ग ।
मेरे जीवन का यही विमर्श,
दुनिया को कराऊँ उनका दर्श ।।
( घटनायें , ये जीवन की पुस्तक से लिए गए अंश )