शुभ भावों का निर्मल जल है विनय भाव का है चन्दन
गुरु वंदन ही अक्षत है ये भक्ति सुमन का अभिनन्दन
मन वच तन से आत्म समर्पण मोह क्षोभ का शमन करूँ
परम पूज्य आचार्य शिरोमणि विराग सिंधु जी को नमन करूँ
ॐ हूं परम पूज्य गणाचार्य गुरुदेव भगवंत श्री १०८ विराग सागर जी महाराज यतिवरेभ्य अनर्घ पद प्राप्तय अर्घं निर्वपमीति स्वाहा ।