हे गà¥à¤°à¥à¤µà¤° विराग सिंधॠआचारà¥à¤¯Â
पà¥à¤•à¤¾à¤°à¥‡à¤‚ सà¤à¥€ तà¥à¤®à¤•à¥‹ निहारे सà¤à¥€Â
आरती उतारे हर बार गà¥à¤°à¥à¤µà¤°â€¦
नगर पथरिया धनà¥à¤¯ हà¥à¤† है, जनà¥à¤® से गà¥à¤°à¥à¤µà¤° तेरे,Â
माठशà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤¾ और कपूरचंदà¥à¤° ने, जोड़े पà¥à¤£à¥à¤¯ घनेरे
सारे जग में हà¥à¤ˆ जयकार पà¥à¤•à¤¾à¤°à¥‡à¤‚ ……
हे गà¥à¤°à¥à¤µà¤° …….
चार à¤à¤¾à¤ˆ दो बहनों के à¤à¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¾, सब कहें दाऊ à¤à¥ˆà¤¯à¤¾,
कटनी शहर में शिकà¥à¤·à¤¾ है पाई, सब कहें जगत खिवैया ।।
सब को मिलता था तà¥à¤®à¤¸à¥‡ दà¥à¤²à¤¾à¤° पà¥à¤•à¤¾à¤°à¥‡à¤‚ ……
हे गà¥à¤°à¥à¤µà¤° ……
सनà¥à¤®à¤¤à¤¿ सिंधॠसे कà¥à¤·à¥à¤²à¥à¤²à¤• दीकà¥à¤·à¤¾, गà¥à¤°à¤¾à¤® बà¥à¤¢à¤¼à¤¾à¤° में पायी,
मà¥à¤¨à¤¿ दीकà¥à¤·à¤¾ शà¥à¤°à¥€ विमल गà¥à¤°à¥ से, औरंगाबाद में पाईÂ
दà¥à¤°à¥‹à¤£à¤—िरि में मिला पद आचारà¥à¤¯ , पà¥à¤•à¤¾à¤°à¥‡à¤‚ सà¤à¥€ ……
हे गà¥à¤°à¥à¤µà¤° ……
विमल गà¥à¤°à¥ के शिषà¥à¤¯ है उतà¥à¤¤à¤®, कहता है जग साराÂ
उनके जैसी फिर से बहाई, है वातà¥à¤¸à¤²à¥à¤¯ की धारा
सनà¥à¤®à¤¤à¤¿ सिंधॠका है ये दà¥à¤²à¤¾à¤° पà¥à¤•à¤¾à¤°à¥‡à¤‚ ……
हे गà¥à¤°à¥à¤µà¤° ……
महावीर की चरà¥à¤¯à¤¾ को गà¥à¤°à¥à¤µà¤°, निज चरà¥à¤¯à¤¾ में ढाला
तà¥à¤®à¤¸à¥‡ कोई सरल संत न देखा हमने निरालाÂ
तà¥à¤®à¤®à¥‡ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¤°à¤¾ है अपार , पà¥à¤•à¤¾à¤°à¥‡à¤‚ ……
हे गà¥à¤°à¥à¤µà¤° ……
रजत थाल में सोने का दीपक, जगमग जगमग करता,
रूप गà¥à¤°à¥ का उस पर अनà¥à¤ªà¤®, तम अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का हरता ।।
आज à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ की लगी है कतार, पà¥à¤•à¤¾à¤°à¥‡à¤‚ ……
हे गà¥à¤°à¥à¤µà¤°â€¦â€¦