हे गुरुवर विराग सिंधु आचार्य
पुकारें सभी तुमको निहारे सभी
आरती उतारे हर बार गुरुवर…
नगर पथरिया धन्य हुआ है, जन्म से गुरुवर तेरे,
माँ श्यामा और कपूरचंद्र ने, जोड़े पुण्य घनेरे
सारे जग में हुई जयकार पुकारें ……
हे गुरुवर …….
चार भाई दो बहनों के भ्राता, सब कहें दाऊ भैया,
कटनी शहर में शिक्षा है पाई, सब कहें जगत खिवैया ।।
सब को मिलता था तुमसे दुलार पुकारें ……
हे गुरुवर ……
सन्मति सिंधु से क्षुल्लक दीक्षा, ग्राम बुढ़ार में पायी,
मुनि दीक्षा श्री विमल गुरु से, औरंगाबाद में पाई
द्रोणगिरि में मिला पद आचार्य , पुकारें सभी ……
हे गुरुवर ……
विमल गुरु के शिष्य है उत्तम, कहता है जग सारा
उनके जैसी फिर से बहाई, है वात्सल्य की धारा
सन्मति सिंधु का है ये दुलार पुकारें ……
हे गुरुवर ……
महावीर की चर्या को गुरुवर, निज चर्या में ढाला
तुमसे कोई सरल संत न देखा हमने निराला
तुममे ज्ञान भरा है अपार , पुकारें ……
हे गुरुवर ……
रजत थाल में सोने का दीपक, जगमग जगमग करता,
रूप गुरु का उस पर अनुपम, तम अज्ञान का हरता ।।
आज भक्तों की लगी है कतार, पुकारें ……
हे गुरुवर……